गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

.ज़रूरी तो नहीं.....





मिट रहा था जो मेरे खातिर...फरेबी था बड़ा 
इश्क हो मुझसे उसे भी....ये ज़रूरी तो नहीं...!

जो सजा लेते हैं अपनी मुस्कुराहट झूठ ही
सच ही होगा दिल में उनके...ये ज़रूरी तो नहीं...!

आज का ये वक्त..ये महफ़िल...समां...रंगीनियाँ
हों मगर तेरे ही दम से....ये ज़रूरी तो नहीं...!

मौत मेरे नाम से बस...आज यूँ शरमा गयी...
आ के ले जाये मुझे ही...ये ज़रूरी तो नहीं...!

थी खिज़ां की गर्मियां नज़दीक दामन से मेरे...
पर जला दें आशियाँ मेरा...ज़रूरी तो नहीं...!

अब नहीं हैं खैरियत मेरी ज़माने में यहाँ
आप भी माने मेरी बातें...ज़रूरी तो नहीं...!




मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

कुछ तो है....






कुछ न कुछ बात तो हुई होगी
वो खफ़ा यूँ न हो गयी होगी...!

आज पलटा नक़ाब-ए-रुख उसने...
चाँदनी दिल में जल गयी होगी...!

चाँद चुपचाप कह गया है कुछ,
चांदनी मुँह छुपा गयी होगी...!

मैंने ज्यादा कहा नहीं कुछ भी...
फिर भी तबियत मचल गयी होगी...!

ज़ुल्फ़ सुलझा रहा है हाथों से...
उसकी कंघी ही खो गयी होगी...!

दाद दे दी है उसको इतनी सी...
कि उसकी भूख मर गयी होगी...!

आते आते लगी है देर हमें...
शाम-ऐ-फुरकत है ढल गयी होगी...!