शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

राब्ता.......








चलो अच्छा हुआ अपनों में  कोई गैर तो निकला
हमीं ने अब  तलक  रखा हुआ था  राब्ता उससे !

ज़माने का चलन देखा....वो गैरों सा था जो अपना   
संभाला था बहुत रिश्ता..मगर संभला न वो मुझसे  !

कहा उसने न जाने क्या, कि दुश्मन हो गयी दुनिया
न दुनिया रह गयी अपनी...न ही रिश्ता कोई उससे !

न  था काबिल मेरे वो शख्स  खुद भी बदगुमां सा था 

जुबान जब भी खुली उसकी,कहा कुछ बेवजह मुझसे  !

खिले अब फूल गुलशन में वो मेरे नाम सब अपने 
जो दी थी बद्दुआ उसने...लगी वो बन दुआ मुझसे  !







17 टिप्‍पणियां:

  1. पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
    और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह.....
    बहुत बढ़िया गज़ल...
    बद्दुआ दुआ बन जाए....और क्या चाहिए.

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन उम्दा ग़ज़ल , क्या बात है,
    कहा उसने न जाने क्या, कि दुश्मन हो गयी दुनिया
    न दुनिया रह गयी अपनी...न ही रिश्ता कोई उससे !

    जवाब देंहटाएं
  4. कहा उसने न जाने क्या, कि दुश्मन हो गयी दुनिया
    न दुनिया रह गयी अपनी...न ही रिश्ता कोई उससे !
    sundar gazal ...
    shubhkamnayen ...!!

    जवाब देंहटाएं
  5. दुआ ही दुआ देने को दिल चाहता है ....

    जवाब देंहटाएं
  6. कहा उसने न जाने क्या, कि दुश्मन हो गयी दुनिया
    न दुनिया रह गयी अपनी...न ही रिश्ता कोई उससे !


    बहुत खूब .... खूबसूरत गजल

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह...बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।

    जवाब देंहटाएं
  8. खिले अब फूल गुलशन में वो मेरे नाम सब अपने
    जो दी थी बद्दुआ उसने...लगी वो बन दुआ मुझसे ..

    किसी प्रेक के मारे की बद्दुआ भी दुआ की तरह ही होती है ...
    बहुत खूब भाव हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति |

    जवाब देंहटाएं

  10. चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई गैर तो निकला
    हमीं ने अब तलक रखा हुआ था राबिता उससे !.......(राबता ?)

    बढ़िया गज़ल .

    जवाब देंहटाएं
  11. संभाला था बहुत रिश्ता..मगर संभला न वो मुझसे ...

    बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  12. चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई गैर तो निकला
    हमीं ने अब तलक रखा हुआ था राबिता उससे !

    समय के चक्र में सब कुछ बदलता रहता है.
    कभी अपना गैर हो जाता है,तो कभी गैर भी
    अपना हो जाता है.

    पर हम तो सदा ही राबिता रखने की कोशिश करते रहेंगें जी.

    पूनम जी,मेरा ब्लॉग भी आपको पुकार पुकार कर कहता रहता है

    'मैं तो हर मोड़ पर तुझे दूँगा सदा ....'

    आप आपकी मर्जी,
    सुनिए तो ठीक न सुनिए तो ठीक.

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह बेहद उम्दा रचना बधाई यहाँ भी पधारें www.arunsblog.in

    जवाब देंहटाएं
  14. खिले अब फूल गुलशन में वो मेरे नाम सब अपने
    जो दी थी बद्दुआ उसने...लगी वो बन दुआ मुझसे !

    बेहतरीन ख्याल. खूबसूरत और बेहद उम्दा गज़ल.

    जवाब देंहटाएं