सोमवार, 28 नवंबर 2011

अशआर कुछ ऐसे भी......





ऐतबार गर करते हो तो,शर्त लगाते क्यूँ हो..
प्यार करते हो तो,बेतरतीबी से जताते क्यूँ हो !
अपने ही प्यार के लिए माँगी थी कभी मोहलत हमसे
आज दिन है कि गैरों के आगे दामन फैलाते क्यूँ हो !!

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अगर वो गैर न थे तो इतने दिनों तक रहे कहाँ ?
जब भी आयीं मुश्किलात तो उनके भी आंसू थे कहाँ ?
जिन्दगी की मुश्किलों से जब हमने निकाल ली कश्ती...
आज किनारों पे बैठ हैं वो,फिर--हम कहाँ ? तुम कहाँ ?

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जिस्म मिल  जाने से ही दिल नहीं मिलते,ऐ दोस्त !
जिस्म को छोड़ कभी दिल भी मिलाया होता...!!
आज गर खोल दिया दिल को *वरक़ की मानिंद तूने
**वरके-खाम  पे अपने भी  कभी गौर किया  होता !!
तू क्या समझेगा मुझे,खुद को समझ पाया है क्या ?
मुझको एक ***मौजूं   बना  ग़ज़ल में  ढाला होता   !!
* पन्ना
**अंदरुनी हालात
***शेर



सोमवार, 21 नवंबर 2011

अंदाज़ अपना अपना....





वो सोचते रहे हम बात करेंगे उनसे कुछ अपनी.....
हम थे ऐसे के उन्हें मायूस ही कर बैठे...!
 
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चाहना यूँ तुम्हारी फितरत ही सही...
एक हम हैं कि इनकार किये जाते हैं..!
 
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कह दिया बेबाक हो कर तुमने कितना कुछ हमसे
और हम ये भी न कह पाए के हमें प्यार है तुमसे ही !!
 
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आरज़ू रह ही गयी हमारी कि देखें तुम्हें दिल के आईने में....
एक तुम थे के जब भी आये तो नकाब थी तुम्हारे चेहरे पे ! 
 
 
 
 

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

तौबा.....

 
बीता दी उम्र हमने जिनके लिए ,
वो न खुश हुए हमारी उल्फत से !
खुदा करे  मेहरबानियाँ  हम पे अपनी,
बाज़  आये हम जमाने भर की मोहब्बत से...!!
 

शनिवार, 12 नवंबर 2011

अल्फाज.........



कुछ अल्फाजों की कमी सी है !
उधार मिलें  कुछ बीज तो...
मैं भी बो दूं
मन के सन्नाटे में !
उग आयेंगे कुछ
अनचाहे से  अल्फाज़...
फिर गूंथ कर
उनको एक डोरी में,
बना लूंगी एक माला ! 
न सीधी सही...
टेढ़ी-मेढी ही सही...
कहीं काम तो आयेगी..
किसी तस्वीर पर चढ़ जायेगी,
किसी जूड़े में लग जायेगी
या फिर...
टांग दूंगी खूंटी पर
अपने ही कमरे में !!
यूँ पड़ी रहेगी तो...
कम से कम
कमरे को ही महकाएगी !!

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

इन्द्रधनुष......



मेरे अधरों पर
वो स्पर्श तुम्हारा
न भूल पायी मैं आज तक !
जब....
हौले से छू तुमने
पुकारा था मेरा नाम
मेरे ही कानों में....!
और एक इन्द्रधनुषी स्मित
खिल गयी थी गालों पर मेरे
यहाँ से वहां तक......
तब.....!!