तू और मैं.......
ढाये चाहत ने सितम हम पे हैं कुछ इस तरह,
रोते-रोते भी हंस दिए हैं हम कुछ इस तरह !
चाहा के तुझको छुपा लूं मैं कहीं इस तरह,
मैं ही मैं देखूं जमाने से छुपा कर इस तरह !!
तू था खुशबू की तरह,बिखरा जो फिर,छुप न सका,
बस मेरे दिल में रहे,ये भी तो तुझसे हो न सका !
रूह से अपनी जुदा सोचा कभी कर दूं तुझे ,
बन हया चमका जो नजरों में मेरी,छुप न सका !!
चाह बन कर के मेरी ये चाह कभी रह न सकी,
गुफ्तगू तुझसे की जो चाहा छुपे, छुप न सकी !
तेरे सीने पे सिर रख कर कभी मैं रो न सकी,
तेरे आगोश में आकर कभी मैं सो न सकी !!
आज है वो रात ,मैं हूँ कहाँ और तू है कहाँ,
बदले हालात हैं और बदल गए दोनों जहाँ !
साथ न रह के भी तू साथ मेरे, मेरे सनम!
दो बदन हम नहीं,एक रूह हैं,एक जान हैं हम !!